राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए हिंदी है जरूरी – कंडवाल

by doonstarnews
 
कोटद्वार । ग्राम्य एकता प्रगति प्रेमांजलि समागम समिति के संस्थापक आरबी कंडवाल की अध्यक्षता में पदमपुर मोटाढाक में हिंदी दिवस के अवसर पर एक गोष्ठी “अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी का बढ़ता वैभव एवं अनुराग” आयोजित की गई। अध्यक्षता करते हुए संस्थापक आरबी कंडवाल ने कहा कि आज जहां हिंदी की व्यापकता के कारण दुनिया के 175 देशों में हिंदी के शिक्षण एवं प्रशिक्षण के अनेक माध्यम केंद्र बन गए हैं वहीं विशाल भारत के कुछ प्रांतों में हिंदी को प्राथमिकता नही दी जा रही है जबकि हिंदी का शिक्षण एवं प्रशिक्षण विश्व के लगभग 180 विश्व विद्यालयों, शैक्षणिक संस्थाओं में चल रहा है। सिर्फ अमेरिका में 100 से अधिक विश्वविद्यालयों कॉलेजों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। जिस दिन समूचा भारत वर्ष हिंदी को सहजता से स्वीकार कर लेगा उस दिन एक नया भारत होगा जोकि विश्वगुरु होगा।
मनमोहन काला ने अपने वक्तव्य में कहा कि विशेषज्ञों का कहना है वैश्वीकरण के इस दौर में विश्व की 10 भाषाएं ही जीवित रहेंगी जिनमें हिंदी भी एक होगी। वैश्वीकरण एवं बाजार वाद के सन्दर्भ में हिंदी का महत्व इसलिए बढ़ेगा क्योंकि भविष्य में भारत व्यवसायिक, व्यापारिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से विकसित देश होगा। नीरजा गौड़ ने अपने उद्बोधन में कहा कि 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने यह निर्णय लिया कि हिंदी केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा होगी क्योंकि भारत में अधिकतर क्षेत्रों में ज्यादातर हिंदी भाषा बोली जाती थी। इसलिए हिंदी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया और इसी निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को प्रत्येक क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
दिनेश चौधरी ने इस अवसर पर भारत के प्रथम डिलीट डॉ पीताम्बर दत्त बडथ्वाल के साहित्य को इन्टर तक की कक्षाओं में पढ़ाए जाने की मांग सरकार से की। रेखा ध्यानी ने कहा कि हिंदी कि खासियत यह है कि यह समझने में बहुत आसान है इसे जैसे लिखा जाता है उसका उच्चारण भी वेसे ही किया जाता है। गोष्ठी का सफल संचालन करते हुए इंजीनियर जगत सिंह नेगी ने कहा कि हिंदी के उत्थान में अनेक लेखकों एवं साहित्यकारों का योगदान रहा है जिनमें से शिवपूजन सहाय का हिंदी के गद्य साहित्य में विशिष्ट योगदान है इसके अलावा बाबू श्याम सुन्दर दास ने अपने जीवन के 50 वर्ष हिंदी साहित्य की सेवा में गुजारे। जिस समय गद्य की भाषा जटिल और संस्कृत निष्ठ थी उस काल में राम वृक्ष वेनपुरी की भाषा सहज, सधी हुई और छोटे छोटे वाक्यों से बनी सजीली भाषा थी यही वजह थी कि उन्हें कलम का जादूगर कहा जाने लगा ।

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