देहरादून : पौड़ी जिले के पोखड़ा क्षेत्र के श्रीकोट गांव में चार वर्षीय मासूम रिया की गुलदार के हमले में दुखद मृत्यु के बाद शनिवार को घंटाघर पर स्थानीय लोगों ने गुस्से और दुख के साथ प्रदर्शन किया। स्थानीय संगठन धाद और फील गुड ट्रस्ट द्वारा आयोजित इस प्रदर्शन में उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष को उजागर किया गया। प्रदर्शनकारियों ने पारंपरिक ढोल-दमाऊ बजाकर अपनी सुरक्षा की मांग को और जोरदार तरीके से उठाया।
यह घटना इसी सप्ताह की है, जिसने ग्रामीणों में भारी आक्रोश पैदा किया है। वे प्रशासन पर बार-बार होने वाले मानव-वन्यजीव टकराव के बावजूद निष्क्रियता का आरोप लगा रहे हैं। महिला कार्यकर्ता शांति बिंजोला और अंबिका उनियाल ने ढोल-दमाऊ के साथ प्रदर्शन का नेतृत्व किया, जो ग्रामीण समुदायों को शिकारी वन्यजीवों से बचाने की तात्कालिकता का प्रतीक था। प्रदर्शन का संचालन नीलेश नेगी ने किया, जिन्होंने फील गुड ट्रस्ट के मांगपत्र को पढ़कर सुनाया।
प्रदर्शनकारियों ने मांग की कि वन्यजीवों के हमले में किसी व्यक्ति की मृत्यु पर परिवार को 25 लाख रुपये का मुआवजा और यदि माता-पिता की मृत्यु हो तो परिवार को वैकल्पिक रोजगार दिया जाए। मानव या पशुधन को चोट लगने पर पूर्ण चिकित्सा उपचार और उचित मुआवजा प्रदान करने की मांग भी की गई। मांगपत्र में मनरेगा के तहत मुख्य मार्गों और स्कूलों के रास्तों पर झाड़ियों की सफाई को प्राथमिकता देने, गांवों के 100 मीटर के दायरे में खेतों को आबाद करने, कुकाट, काला बांस, गाजर घास जैसी जंगली झाड़ियों को हटाने और संवेदनशील गांवों में जालीनुमा तारों की बाड़ लगाने की मांग शामिल थी।
इसके अतिरिक्त, वन विभाग को पर्याप्त पिंजड़े उपलब्ध कराने, गुलदारों और बाघों की गणना कर कॉलर आईडी लगाने ताकि गलती से गैर-नरभक्षी जानवर न मारे जाएं, और नवजात शावकों की निगरानी सुनिश्चित करने की मांग की गई। प्रदर्शनकारियों ने जंगल की आग या अपने खेतों के अलावा अन्य स्थानों पर आग लगाने वालों के लिए कम से कम पांच साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान करने की भी मांग की। उन्होंने एआई-आधारित प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, सेंसर-युक्त लाइट्स और ड्रोन तकनीक से गुलदारों की निगरानी की वकालत की।
धाद के प्रतिनिधि लोकेश नावानी ने प्रदर्शन स्थल पर उप-जिलाधिकारी (एसडीएम) को मांगपत्र सौंपा, जिसमें त्वरित समाधान और निवारक कदमों की मांग की गई। सभा को संबोधित करते हुए पोखड़ा के सामाजिक कार्यकर्ता कविंद्र इस्टवाल ने गुस्सा जाहिर करते हुए कहा, “पहाड़ों में ग्रामीण आत्मरक्षा के लिए हथियारों का उपयोग नहीं कर सकते, फिर भी ये जानवर हमारे प्रियजनों को शिकार बना रहे हैं।” सामाजिक कार्यकर्ता जगमोहन मेहंदीरत्ता ने वन विभाग के बजट आवंटन की आलोचना की, जिसमें ग्रामीण सुरक्षा के सवाल पर लापरवाही का आरोप लगाया।
उत्तराखंड आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती ने इस मुद्दे को उच्च सरकारी स्तर तक ले जाने की आवश्यकता पर जोर दिया और चेतावनी दी कि मांगें न माने जाने पर प्रदर्शन और तेज होंगे। संयुक्त नागरिक संगठन के सुशील त्यागी ने बच्ची की जन्मदिन पर मृत्यु को “हृदय विदारक” बताया और कहा कि बार-बार होने वाली ऐसी घटनाएं सामाजिक आक्रोश को बढ़ा रही हैं। धाद के डी.सी. नौटियाल ने संगठन की प्रतिबद्धता दोहराई, कहा कि वे पिछले एक साल से इस मुद्दे पर समाज और शासन का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं और दीर्घकालिक समाधान के लिए प्रतिबद्ध हैं।
कांग्रेस प्रदेश सचिव कवींद्र ईष्टवाल ने कहा कि देहरादून के घंटाघर पर, ग्रामीण और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक बड़ा प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने वन मंत्री और मुख्यमंत्री से जंगली जानवरों के बढ़ते हमलों पर तुरंत कार्रवाई की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि इन हमलों के कारण ग्रामीण जीवन, पशुपालन और खेती संकट में हैं। उन्होंने सरकार द्वारा दिए गए लाइसेंसी हथियारों की व्यवस्था पर भी सवाल उठाया, क्योंकि उनका कहना है कि इन हथियारों के इस्तेमाल के लिए हर बार अधिकारियों से अनुमति लेनी पड़ती है, जिससे उनका कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि अगर 15 दिनों के भीतर सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो वे अपने हथियार जिला मजिस्ट्रेट (DM) को सौंप देंगे। यह आंदोलन न सिर्फ अपनी सुरक्षा के लिए है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के लिए भी है।
प्रदर्शन में अवधेश शर्मा, सुरेंद्र सिंह रावत, दिनेश भंडारी, किशन सिंह, सुशील कुमार, गणेश उनियाल, आशा डोभाल, चंद्रा भागा शुक्ला, अशोक जोशी, विजय जोशी, नरेंद्र सुंदरियाल, उमेश्वर सिंह रावत, अजीत सिंह गुसाईं, पंकज सुंदरियाल, कुलदीप रावत, कैलाश लखेड़ा, मोहन सती, सुमन ढौंडियाल, नरेंद्र पाल, अनिल जुयाल, प्रकाश नांगिया, तन्मय ममगाईं, शांति प्रकाश जिज्ञासु, हिमांशु आहूजा, दीपक सुंदरियाल और गुणानंद जखमोला सहित कई लोग शामिल थे।