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देहरादून : भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को ब्रिटिश भारत के लायलपुर जिले (अब पाकिस्तान में) में किशन सिंह और विद्यावती के घर हुआ था। भगत सिंह ने अपनी स्कूली शिक्षा दयानंद एंग्लो-वैदिक हाई स्कूल से की और फिर लाहौर के नेशनल कॉलेज में पढ़ाई की। अपने शुरुआती दिनों में, भगत सिंह महात्मा गांधी द्वारा लोकप्रिय अहिंसा के आदर्शों के अनुयायी थे। सिंह बाद में मार्क्सवाद के प्रशंसक हो गए थे और वे व्लादिमीर लेनिन, लियोन ट्रॉट्स्की और मिखाइल बाकुनिन के लेखन से प्रेरित थे।
- मार्च 1926 में, उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से एक समाजवादी संगठन नौजवान भारत सभा की स्थापना की। 1927 में, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर 1926 में हुए लाहौर बम विस्फोट मामले में शामिल होने का आरोप लगाया गया, लेकिन उन्हें 5 सप्ताह के बाद रिहा कर दिया गया।
- 1928 में, उन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) का गठन किया, जो बाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) बन गया। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान और चन्द्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारी भी इसका हिस्सा थे।
- 1928 में, लाहौर में ब्रिटिश साइमन कमीशन के खिलाफ स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय के नेतृत्व में एक विरोध मार्च पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया, जिसमें राय गंभीर रूप से घायल हो गए और बाद में उनका निधन हो गया। सिंह ने एचएसआरए सदस्यों सुखदेव, राजगुरु और चन्द्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट को मारने और राय की मौत का बदला लेने की योजना बनाई।
- 17 दिसंबर 1928 को उन्होंने लाहौर के जिला पुलिस मुख्यालय में अपनी योजना को अंजाम दिया लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने गलती से जेम्स स्कॉट के बजाय स्कॉट के सहायक जॉन पी सॉन्डर्स की हत्या कर दी है।
- फ्रांसीसी अराजकतावादी ऑगस्टे वैलेन्ट से प्रेरित होकर, जिन्होंने 1893 में चैंबर ऑफ डेप्युटीज़ पर बमबारी की थी, सिंह ने केंद्रीय विधान सभा में सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक और व्यापार विवाद विधेयक का विरोध करने की योजना बनाई। 8 अप्रैल, 1929 को सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली में बम फेंके। उनका इरादा केवल अंग्रेजों को डराना था, किसी को मारना नहीं लेकिन फिर भी, कुछ सदस्य घायल हो गए। बम फेंकने के बाद सिंह और दत्त भागे नहीं और वहीं खड़े होकर ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगाते रहे। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
- सिंह को दिल्ली जेल से मियांवाली में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उन्होंने और उनके सह-कैदियों ने भारतीय और यूरोपीय कैदियों के बीच भेदभाव के खिलाफ विरोध किया, बेहतर भोजन, किताबें, समाचार पत्र आदि की मांग करते हुए भूख हड़ताल पर बैठ गए, इस आधार पर कि वे राजनीतिक कैदी थे, अपराधी नहीं।
- 23 मार्च, 1931 को सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फाँसी दे दी गई। तीनों को श्रद्धांजलि देने के लिए 23 मार्च को ‘शहीद दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
- जलियावाला बाग हत्याकांड के बाद भगत सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का फैसला किया। वह इस घटना से इतना परेशान हो गये थे कि उन्होंने स्कूल से छुट्टी लेकर नरसंहार स्थल पर गये। तब वह केवल 12 वर्ष के थे।
- बचपन में भगत सिंह हमेशा बंदूकों के बारे में बात करते थे और खेतों में बंदूकें उगाना चाहते थे ताकि वह अंग्रेजों से लड़ सकें।
- वह कॉलेज के समय अभिनय भी करते थे और उन्होंने राणा प्रताप, सम्राट चंद्रगुप्त और भारत दुर्दशा जैसे कई नाटकों में अभिनय किया था। उन्होंने नाटकों में अपने अभिनय कौशल का इस्तेमाल अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह को प्रेरित करने के लिए किया।
- 1922 की चौरी चौरा घटना के बाद, सिंह युवा क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गए और भारत में ब्रिटिश सरकार को हिंसक तरीके से उखाड़ फेंकने की वकालत करने लगे।
- वह नास्तिक थे और कम उम्र में ही लेनिन के नेतृत्व में समाजवाद और समाजवादी क्रांतियों की ओर आकर्षित हुए और उनके बारे में पढ़ना शुरू कर दिया।
- वह एक लेखक भी थे और उन्होंने कीर्ति और वीर अर्जुन जैसे समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिए लिखा था।
- भगत सिंह शादी नहीं करना चाहते थे. ऐसे में उनके माता-पिता ने उनकी शादी करने की कोशिश की, तो वह अपना घर छोड़कर कानपुर चले गए थे. उन्होंने यह कहते हुए घर छोड़ दिया था कि “अगर मेरा विवाह गुलाम भारत में हुआ, तो मेरी वधु केवल मृत्यु होगी.”
- सिख होने के नाते भगत सिंह के लिए उनकी दाढ़ी और बाल बहुत महत्वपूर्ण थे. मगर उन्होंने बाल कटवा दिए, ताकि वह अंग्रेज उन्हें पकड़ न सके. अंतत: वह ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या के बाद लाहौर से भागने में सफल रहे थे.
- जेल के अंदर भी भगत सिंह का क्रांतिकारी रवैया कायम रहा. उन्होंने आक्रामक तरीके से भारत की स्वतंत्रता के लिए कैदियों को प्रेरित किया और अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए.
- अपने मुकदमे की सुनवाई के समय उन्होंने अपना कोई बचाव पेश नहीं किया, बल्कि इस अवसर का इस्तेमाल उन्होंने भारत की आजादी की योजना का प्रचार करने में किया.
- उनको मौत की सजा 7 अक्टूबर 1930 को सुनाई गई, जिसे उन्होंने निर्भय होकर सुना.
- जेल में रहते हुए उन्होंने विदेशी मूल के कैदियों के साथ अच्छा व्यवहार करने की मांग की. उनके साथ इलाज में भेदभाव के विरोध में उन्होंने 116 दिन की भूख हड़ताल भी की थी.
- उनकी फांसी की सजा को 24 मार्च 1931 से 11 घंटे घटाकर 23 मार्च 1931 को शाम 7:30 बजे कर दिया गया. उन्हें फांसी की सजा सुनाने वाला न्यायाधीश का नाम जी.सी. हिल्टन था.
- ऐसा कहा जाता है कि कोई भी मजिस्ट्रेट उनकी फांसी के समय उपस्थित रहने को तैयार नहीं था. उनकी मौत के असली वारंट की अवधि समाप्त होने के बाद एक मानद जज ने वारंट पर हस्ताक्षर किए और फांसी के समय तक उपस्थित रहे.
- लोगों का कहना है कि भगत सिंह हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गए और “ब्रिटिश साम्राज्यवाद का नाश हो” यह उनके द्वारा ब्रिटिशों के खिलाफ अंतिम नारा था.
- कहा जाता है कि भगत सिंह की आखिरी इच्छा थी कि उन्हें फांसी पर लटकाने की जगह गोली मार कर मौत दी जाए. मगर अंग्रेजों ने उनकी इस इच्छा को नहीं माना.
- इस तरह भारत के सबसे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी को केवल 23 साल की उम्र में फांसी दी गई. उनकी मृत्यु ने सैकड़ों लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया.
- पाकिस्तान के प्रमुख नगर लाहौर में उनके नाम पर एक चौक का नाम भगत सिंह चौक रखा गया है।
- महान क्रांतिकारी और प्रेरणा पुँज भगत सिंह की जयन्ती पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!!