क्या आप युवा हैं ?

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देहरादून : युवा शब्द एक अदभुत जादुई शब्द है जिससे तन और मन में ऊर्जा का संचार होता है। जीवन के इस आयाम में हम अपना भविष्य निर्मित करतें है जो राष्ट्र की प्रगति के साथ हमें विश्व में अपना विशिष्ट स्थान बनाने में सहायक होता है। आज का युवा बेरोजगारी, श्रम सम्मत आजिविका, समाज में समुचित सम्मान के संकट से घिरा हुआ है। यद्यपि नये क्षेत्र और सम्भावनायें पहले से अधिक बढ़ी है, तथापि दिशा-निर्देशन के अभाव में वह किंकर्तव्यविमूढ़ है। फलस्वरूप व्यक्तित्व विघटन की घटनाओं में वृद्धि हुई है।
आज युवाओं का लगता है कि राजनीति विरासती लोगों, अमीरों और अपराधियों का काम है। जबकि राजनीति का सम्बंध  है अपने आसपास की समस्याओं को समझने और उनके समधान के लिए ज़रूरी नेतृत्व से है। इस तरह युवाओं के मन में जो यह ग़लत  धारणा बनी है, इससे राजनीति का बहुत नुक़सान हुआ है। इस काम में क़ाबिल और उत्साह से भरे युवा  आने से बच रहे हैं। दूसरी तरफ़ युवाओं के ख़िलाफ़ जिस गंदी राजनीति का इस्तेमाल किया गया है, वह हम आसानी से अपने आसपास देख सकते है। कई युवा जो राजनीति में है , वह सिर्फ़ धार्मिक उन्माद, बड़े नेताओं की चापलूसी, स्थानीय हिंसा और कम समय में किसी तरह नाम हो जाने और धनवान हो जाने की कुंठा को ही राजनीति समझ बैठे हैं। सेवा, समर्पण और विकास की ओर उनका फोकस नहीं रह गया है। नई चमकीली लंबी गाड़ी, सुन्दर परिधान और शानो-शौकत से वे चकाचौंध हो गए है।
आजकल भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। 2011 की जनगणना के अनुसार 25 वर्ष तक की आयु वाले लोग कुल जनसंख्या का 50 फ़ीसदी  हैं। दुनिया के दूसरे देशों के सापेक्ष भारत की औसत आयु  कम हो रही है लेकिन हैरानी की बात कि  यहाँ के सांसदों की औसत आयु दूसरे देशों के मुक़ाबले बढ़ती जा रही है। इटली, डेनमार्क, फ़्रान्स में युवा नेताओं की संख्या  जहाँ संसद में क्रमशः 59%, 49% और  37% हैं, वही भारत की संसद में केवल 20% युवा (18-45) बैठते  हैं। पहली लोकसभा में सांसदों की औसत आयु 47 वर्ष थी । यह कम होने की बजाय 2019 में बढ़ कर 57 साल हो गयी है। हम एक ऐसे युवा देश हैं जहाँ राजनीति ज़्यादातर उम्रदराज़ लोगों के ज़िम्मे है। हाल ही में फ्रांस के नवनियुक्त प्रधानमंत्री की आयु मात्र 34 वर्ष है। कई देशों में युवा मन्त्री हैं और युवतियों भी मन्त्री बन रहीं है, परन्तु हम युवा राजनीतिक परिवेश पैदा नहीं कर पा रहे हैं।
मैं अक्सर युवकों से संवाद रखता हूँ और उनके कार्यक्रमों में प्रतिभाग करता हूँ। युवाओं का मानना है कि राजनीति करने के लिए अब बहुत पैसे की ज़रूरत पड़ती है। कई युवाओं ने राजनीति से निराशा जताते हुए बताया  कि अब आम युवा के लिए राजनीति करना मुश्किल है।  पहले से जमे हुए लोग, युवाओं को मौक़ा नही देना चाहते। वह उन्हें सिर्फ़ कार्यकर्ता बना कर अपनी सेवा कराना चाहते हैं।ज़्यादातर युवा वंशवाद,  पूँजी का बोलबाला, करियर की चिंता और राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण की वजह से निराश दिखे। लेकिन सभी युवा लगभग इस बात से सहमत थे कि राजनीति में युवाओं के लिए मार्गदर्शन का अभाव है और भारत में किसी भी एक ऐसे जाने -माने मंच की कमी है, जहाँ युवा राजनीति की बारीकियाँ  सीख सकते हैं। 2050 के भारत की परिकल्पना और विकास का राजपथ निर्माण में उनकी भागीदारी का कोई विमर्श समाज में नहीं है।
राजनीति में युवाओं का रास्ता वंशवाद, पूँजी और बैकग्राउंड से जुड़ी  चिंताओं ने रोक रखा है, तब ऐसे माहौल में युवाओं को जगह बनाने के लिए मार्गदर्शन की ख़ास ज़रूरत है। युवाओं की घटती दिलचस्पी और निराश होते युवा नेतृत्व को तुरन्त मार्गदर्शन की आवश्यकता है।  वे युवा, जो राजनीति में करियर नहीं  बनाना चाहते यानी जिन्हें सीधे -सीधे चुनाव नही लड़ना है, लेकिन राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं। वह अपने जिले और राज्य के मुद्दे एक जागरूक नागरिक की तरह किसी मंच पर उठाना चाहते हैं। सार्वजनिक स्पेस में ऐसे योग्य युवाओं को अपनी बात रखने का मौक़ा नहीं मिल पा रहा है।
सोशल मीडिया पर युवा बहुत सक्रिय रहतें है। एक्स, व्हाट्सएप, फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया प्लेट फ़ार्म के ज़रिए युवाओं को अपनी बात रखने का मौक़ा मिल रहा है। इससे न सिर्फ़ वह  अपनी बात रख पा रहे हैं बल्कि राजनीति के प्रति उनकी समझ और दिलचस्पी बढ़ रही है। परन्तु इसमें फेक विवरण की बहुतायत ने बड़ी गम्भीर स्थिति उत्पन्न कर दी है। युवाओं का एक वर्ग ऐसा है, जिसे राजनीति का क्षेत्र काम-काज के तौर पर पसंद है। राजनीतिक कैम्पेनिंग में रुचि है लेकिन इसे सीखने और ज़मीन पर उतारने के लिए कोई मार्गदर्शन नही है।  युवाओं का एक ऐसा वर्ग भी है, जो राजनीति में न सिर्फ़ रुचि रखता है, बल्कि उन्हें सीधे चुनावी राजनीति में उतरना है या उतर चुके हैं। मार्गदर्शन के अभाव से उन्हें मेहनत के मुताबिक़ सफलता नही मिल रही है। 
चौधरी चरण सिंह जी कहते थे कि युवाओं को राजनीति में आना चाहिए परन्तु विद्यालयों को राजनीति का अखाड़ा नही बनाना चाहिए। उनका मानना था कि यदि अच्छे लोग राजनीति में नहीं आएंगे तो देश का भाग्य गैर-ईमानदार और सत्तालोलुप लोगों के हाथ में चला जायेगा। भारत के युवाओं को राजनीति के प्रति नकारात्मक भाव से बचाने और ऐसे माहौल में आगे बढ़ने के लिए मार्गदर्शित करने के लिए हमें नित नए मार्ग ढूँढने होंगे। कई युवा आज ऑनलाइन और ऑफलाइन इस मुहिम के साथ जुड़ कर राजनीति की दुनिया में नए अनुभवों से गुज़र रहे हैं। युवाओं के लिए राजनीति का ‘र’ समझाने के लिए अभिनव प्रयोग करने की आवश्यकता है।
युवा होने से अधिक बात यह महत्वपूर्ण है कि हमारी सोच युवा हो, हमारे कार्यक्रम युवा केंद्रित हों, क्योंकि वे ही हमारे भविष्य नियन्ता है और उनके सुन्दर भविष्य से ही भारत समृद्ध हो सकेगा।

मेरे आँगन के पेड़ के हरे पत्तों को तेरी जवानी की दुआ लगे,

चिड़ियों को ठिकाना मिले और गीतों से गुलज़ार हो आशियाना मेरा…
                                         ~ नरेन्द्र
शुभ राष्ट्रीय युवा दिवस!!

लेखक : नरेन्द्र सिंह चौधरी, भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं. इनके द्वारा वन एवं वन्यजीव के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किये हैं.

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