जानें सीआरपीसी की धारा 107 और 116 के बारें में, एडवोकेट शैलेन्द्र सिंह ने दी दंड प्रक्रिया संहिता की जानकारी

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हरिद्वार : कानून में 107/116/151 ये crpc की धाराएं है जिनके तहत पुलिस को किसी भी व्यक्ति को इस आधार पर गिरफ्तार करने की शक्ति दी है कि यदि पॉलिसी को लगता है कि फलां व्यक्ति कोई अपराध करने जा सकता है या कर सकता है उसके कार्य से शान्ति भंग हो सकती है तब पुलिस शांति भंग निवारण के लिए आशंकित व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 107/116 का प्रयोग कानून व्यवस्था को बनाए रखने की अहम धारा है। जिसका प्रयोग संभावित विवाद के दृष्टिगत किया जाता है, लेकिन पुलिस अपनी सहूलियत और बचत के लिए इसका गलत प्रयोग कर लेती है। खासतौर पर चुनाव के दौरान इसका सर्वाधिक प्रयोग होता है। पिछले चुनाव की तुलना में अधिक चालान के लक्ष्य को पूरा करने के दबाव में पुलिस अक्सर निर्दोष पर यह कार्रवाई कर देती है।

सीआरपीसी की धारा 107 और धारा 111

सीआरपीसी की धारा 107 और धारा 111 धारा 107 सीआरपीसी के तहत मजिस्ट्रेट को यह जानकारी प्राप्त होती है कि किसी व्यक्ति द्वारा शांति भंग करने या सार्वजनिक शांति भंग करने या किसी गलत कार्य को करने की संभावना है जो संभवत: शांति भंग करने या सार्वजनिक शांति भंग करने का प्रयास हो, कार्रवाई करने का पर्याप्त आधार हो, तो उसे यह बताना जरूरी है कि उसने ऐसे व्यक्ति को कारण बताओ के लिए आदेश क्यों नहीं दिए। इसके साथ ही यह भी बताना होता है कि इस तरह की चीजों के लिए जमानती बॉन्ड के साथ या जमानती बॉन्ड के बिना, किसी निश्चित अवधि के शांति बनाए रखने के लिए, एक वर्ष से अधिक नहीं, जारी करना जैसा कि मजिस्ट्रेट को सही लगता है।

सीआरपीसी की धारा 107

107. अन्य दशाओं में परिशांति कायम रखने के लिए प्रतिभूति

  1. जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को इत्तिला मिलती है कि संभाव्य है कि कोई व्यक्ति परिशांति भंग करेगा या लोक प्रशांति विक्षुब्ध करेगा या कोई ऐसा सदोष कार्य करेगा जिससे संभाव्यतः परिशांति भंग हो जाएगी या लोक प्रशांति विक्षुब्ध हो जाएगी तब यदि उसकी राय में कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार है तो वह, ऐसे व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात् उपबंधित रीति से अपेक्षा कर सकता है कि वह कारण दर्शित करे कि एक वर्ष से अनधिक की इतनी अवधि के लिए, जितनी मजिस्ट्रेट नियत करना ठीक समझे, परिशांति कायम रखने के लिए उसे ‘प्रतिभुओं सहित या रहित] बंधपत्र निष्पादित करने के लिए आदेश क्यों न दिया जाए ।
  2. इस धारा के अधीन कार्यवाही किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष तब की जा सकती है जब या तो वह स्थान जहां परिशांति भंग या विक्षोभ की आशंका है, उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर है या ऐसी अधिकारिता के अंदर कोई ऐसा व्यक्ति है, जो ऐसी अधिकारिता के परे संभाव्यतः परिशांति भंग करेगा या लोक प्रशांति विक्षुब्ध करेगा या यथापूर्वोक्त कोई सदोष कार्य करेगा।

सीआरपीसी की धारा 116

116. इत्तिला की सच्चाई के बारे में जांच

  1. जब धारा 111 के अधीन आदेश किसी व्यक्ति को, जो न्यायालय में उपस्थित है, धारा 112 के अधीन पढ़कर सुना या समझा दिया गया है अथवा, जब कोई व्यक्ति धारा 113 के अधीन जारी किए गए समन या वारंट के अनुपालन या निष्पादन में मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर है या लाया जाता है तब मजिस्ट्रेट उस इत्तिला की सच्चाई के बारे में जांच करने के लिए अग्रसर होगा जिसके आधार पर वह कार्रवाई की गई है और ऐसा अतिरिक्त साक्ष्य ले सकता है जो उसे आवश्यक प्रतीत हो ।
  2. ऐसी जांच यथासाध्य, उस रीति से की जाएगी जो समन-मामलों के विचारण और साक्ष्य के अभिलेखन के लिए इसमें इसके पश्चात् विहित है।
  3. उपधारा (1) के अधीन जांच प्रारंभ होने के पश्चात् और उसकी समाप्ति से पूर्व यदि मजिस्ट्रेट समझता है कि परिशांति भंग का या लोक प्रशांति विक्षुब्ध होने का या किसी अपराध के किए जाने का निवारण करने के लिए, या लोक सुरक्षा के लिए तुरंत उपाय करने आवश्यक हैं, तो वह ऐसे कारणों से, जिन्हें लेखबद्ध किया जाएगा, उस व्यक्ति को, जिसके बारे में धारा 111 के अधीन आदेश दिया गया है, निदेश दे सकता है कि वह जांच समाप्त होने तक परिशांति कायम रखने और सदाचारी बने रहने के लिए प्रतिभुओं सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करे और जब तक ऐसा बंधपत्र निष्पादित नहीं कर दिया जाता है, या निष्पादन में व्यतिक्रम होने की दशा में जब तक जांच समाप्त नहीं हो जाती है, उसे अभिरक्षा में निरुद्ध रख सकता है:
    परंतु –
    (क) किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध धारा 108, धारा 109 या धारा 110 के अधीन कार्यवाही नहीं की जा रही है, सदाचारी बने रहने के लिए बंधपत्र निष्पादित करने के लिए निदेश नहीं दिया जाएगा :
    (ख) ऐसे बंधपत्र की शर्तें, चाहे वे उसकी रकम के बारे में हों या प्रतिभू उपलब्ध करने के या उनकी संख्या के, या उनके दायित्व की धन संबंधी सीमा के बारे में हों, उनसे अधिक दुर्भर न होंगी जो धारा 111 के अधीन आदेश में विनिर्दिष्ट हैं।
  4.  इस धारा के प्रयोजनों के लिए यह तथ्य कि कोई व्यक्ति आभ्यासिक अपराधी है या ऐसा दुःसाहसिक और भयंकर है कि उसका प्रतिभूति के बिना स्वच्छन्द रहना समाज के लिए परिसंकटमय है, साधारण ख्याति के साक्ष्य से या अन्यथा साबित किया जा सकता है।
  5. जहां दो या अधिक व्यक्ति जांच के अधीन विषय में सहयुक्त रहे हैं वहां मजिस्ट्रेट एक ही जांच या पृथक् जांचों में, जैसा वह न्यायसंगत समझे, उनके बारे में कार्यवाही कर सकता है।
  6. इस धारा के अधीन जांच उसके आरंभ की तारीख से छह मास की अवधि के अंदर पूरी की जाएगी, और यदि जांच इस प्रकार पूरी नहीं की जाती है तो इस अध्याय के अधीन कार्यवाही उक्त अवधि की समाप्ति पर, पर्यवसित हो जाएगी जब तक विशेष कारणों के आधार पर, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, मजिस्ट्रेट अन्यथा निदेश नहीं करता है : – परंतु जहां कोई व्यक्ति, ऐसी जांच के लंबित रहने के दौरान निरुद्ध रखा गया है वहां उस व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही, यदि पहले ही पर्यवसित नहीं हो जाती है तो ऐसे निरोध के छह मास की अवधि की समाप्ति पर पर्यवसित हो जाएगी।
  7. जहां कार्यवाहियों को चालू रखने की अनुज्ञा देते हुए उपधारा (6) के अधीन निदेश किया जाता है, वहां सेशन न्यायाधीश व्यथित पक्षकार द्वारा उसे किए गए आवेदन पर ऐसे निदेश को रद्द कर सकता है, यदि उसका समाधान हो जाता है कि वह किसी विशेष कारण पर आधारित नहीं था या अनुचित था।

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