ओआरओपी से पूर्व सैनिकों की वित्तीय स्थिति में सुधार

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नई दिल्ली : ​भारतीय सशस्त्र बलों का कल्याण हमारे टेलीविजन चैनलों पर कई चर्चाओं का विषय और कई बहसों का मुद्दा बना रहता है। हमें अक्सर अपने समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में ओआरओपी पर लेख और निबंध दिख जाते हैं। सोशल मीडिया पर विभिन्न पूर्व सैनिक ग्रुप में अपमानजनक टिप्पणियों से लदे लेखों को भर दिया जाता है, जो चीखते हैं कि तत्कालीन सरकार ने वन रैंक, वन पे के अपने वादे को पूरा नहीं किया। ​हमें यह समझने के लिए अपने दृष्टिकोण को संतुलित करने की आवश्यकता है कि क्या 2014 से पिछले दस वर्षों ने हमारे पूर्व सैनिकों एवं उनके परिवारों के जीवन पर प्रभाव डाला है या नहीं, तथा उनके जीवन स्तर और जीवन शैली में सुधार हुआ है या नहीं। इसने निस्संदेह पूर्व सैनिकों के जीवन को आरामदायक बनाया है। हालांकि सैनिकों के लिए अभी भी सुधार की एक बड़ी गुंजाइश है, जो है अफसर रैंक से नीचे के कार्मिक (पर्सोनेल बिलो ऑफिसर रैंक (पीबीओआर))।
​आइए हम 2014 से पहले के समय और 2024 में हमारी ओआरओपी स्थिति के बीच संतुलित दृष्टिकोण रखें। आइए हम वर्ष 1947 में हमारे स्वतंत्र राष्ट्र के जन्म के समय से ओआरओपी की उत्पत्ति को देखें। आजादी के बाद लगभग 27 वर्षों तक हमारे सशस्त्र बलों के लिए पेंशन तय करने का मॉडल “वन रैंक वन पेंशन मॉडल” रहा। 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद, 1973 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने ओआरओपी मॉडल को समाप्त कर दिया। फिर तीसरे वेतन आयोग ने हमारे सैनिकों/सेवानिवृत्त सैनिकों की पेंशन को और कम कर दिया तथा सिविल डिफेंस कर्मचारियों की पेंशन में वृद्धि कर दी।
​वर्ष 1986 में, प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने चौथे वेतन आयोग में ‘रैंक वेतन योजना’ लागू की। इससे सेना में सात अफसर रैंक तथा नौसेना व वायुसेना में उनके समकक्ष रैंक का मूल वेतन समान स्तर पर आ गया। इसके परिणामस्वरूप 1986 और बाद के वर्षों में सशस्त्र बलों के कई पूर्व सैनिकों की पेंशन घट गई। इससे सशस्त्र बलों के अधिकारियों और उनके समकक्ष अधिकारियों के वेतनमानों में भी विषमता पैदा हुई। पूर्व सरकारों द्वारा इस अन्याय और सौतेले व्यवहार के परिणामस्वरूप पूर्व सैनिकों में असंतोष व क्रोध पैदा हुआ। उन्होंने आंदोलन करने तथा ‘एक रैंक एक वेतन’ की अपनी मांगों को सड़कों पर ले जाने की धमकी दी। पूर्व सैनिकों की इस परेशानी और निराशा को दूर करने के लिए, सरकार ने कोश्यारी समिति की नियुक्ति की, जिसमें भगत सिंह कोश्यारी की अध्यक्षता में दस सदस्यों का सर्वदलीय संसदीय पैनल शामिल है। ​कोश्यारी समिति ने पच्चीस वर्षों के बाद प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के कार्यकाल में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। समिति ने पूर्व सैनिकों की ओआरओपी की मांगों को पूरा किया और कहा कि सेवानिवृत्ति की तारीख के बावजूद समान रैंक पर समान अवधि की सेवा के लिए समान पेंशन का भुगतान किया जाना चाहिए।
 ​साथ ही, भविष्य में पेंशन दर में होने वाली किसी भी बढ़ोतरी का लाभ स्वचालित रूप से पिछले पेंशनभोगियों को दिया जाना चाहिए। हालाँकि, यूपीए सरकार ने ओआरओपी योजना को लागू नहीं किया, बल्कि पूर्व सैनिकों की आँखों में धूल झोंकना जारी रखा और जानबूझकर इसके कार्यान्वयन में देरी की। सरकार के इस व्यवहार से पूर्व सैनिकों ने अपना धैर्य और विश्वास खो दिया। उन्होंने देशव्यापी आंदोलन और जुलूस निकाले। कई पूर्व सैनिकों ने भारतीय सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर, भारत के राष्ट्रपति को शौर्य एवं सेवा पदक लौटा दिए। कई पूर्व सैनिक संगठन नई दिल्ली में जंतर-मंतर पर भूख हड़ताल पर बैठ गए।
इस बीच 2014 में लोकसभा चुनाव का समय था। विपक्षी दल, अर्थात् भाजपा, ने पूर्व सैनिकों की मांगों का समर्थन किया। तब प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने हरियाणा के रेवाड़ी में आयोजित पूर्व सैनिकों की रैली में यूपीए सरकार से ओआरओपी पर श्वेत पत्र की मांग की थी। उन्होंने वादा किया कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो वह ओआरओपी योजना लागू करेंगे। ​अंततः 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने ओआरओपी योजना को लागू करने का आदेश पारित किया। पिछले दशक (2014 – 2024) में ओआरओपी डेटा की तुलना से कोई भी आसानी से समझ सकता है कि मोदी सरकार द्वारा अपने दो कार्यकालों में एक शानदार वित्तीय पैकेज दिया गया है। निम्नलिखित व्यय डेटा से पता चलता है कि 2014 से पहले और बाद की तुलना करें तो पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों की वित्तीय स्थिति में सुधार हुआ है। 2014 से पहले सरकार द्वारा किया गया व्यय नीचे दिए गए व्यय से कम था।
  1.  1 जुलाई 2014 से प्रभावी ओआरओपी-I के तहत पेंशनभोगियों की कुल संख्या –      20,60,220       
  2. 1 जुलाई 2019 से प्रभावी ओआरओपी-II के तहत पेंशनभोगियों की कुल संख्या –  25 लाख (लगभग)   
  3. 1 जुलाई 2024 से प्रभावी ओआरओपी-III के तहत पेंशनभोगियों की कुल संख्या –  21.56 लाख (लगभग)
  4. 30 जून 2024 तक पारिवारिक पेंशनभोगियों की कुल संख्या – 6,12,356                 
  5.  30 जून 2024 तक विकलांगता पेंशनभोगियों की कुल संख्या- 2,25,561
  1. ओआरओपी-I के तहत वार्षिक व्यय –      रु 7123.28 करोड़ 
  2. ओआरओपी-II के तहत वार्षिक व्यय –     रु 8450.04 करोड़ 
  3. ओआरओपी III के तहत वार्षिक व्यय –    रु 6703.24 करोड़  

2018-19 से पेंशन बजट और वास्तविक व्यय निम्नानुसार है

  • वित्त वर्ष      ​   –  वास्तविक व्यय
  • 2018-19        –           101774.61 
  • 2019-20        –           117810.24
  • 2020-21        –          128065.88
  • 2021-22        –           116873.37
  • 2022-23        –           153406.90
  • 2023-24        –          142093.00 
यह दर्शाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वर्तमान सरकार पूर्व सैनिकों से किए गए वादों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। ​कहते हैं कि ‘जिसको सम्मान देना चाहिए, उसे सम्मान दो’, हमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उचित सम्मान देना चाहिए जिन्होंने हमारे पूर्व सैनिकों के कल्याण के सपने को साकार किया है। वह एक ऐसे व्यक्ति के रूप में सामने आए हैं जो अपनी बात पर कायम रहता है।
  • लेखक : कमांडर जीजे सिंह, मास्टर मेरिनर, वरिष्ठ रक्षा विश्लेषक

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